सियासी बयार में व्यापार मंडल तार-तार
- अपने-अपने हिसाब से समर्थन की परिभाषा बांच रहे हैं व्यापारी नेता
- नफा नुकसान की बिसात पर मोहरा बनाए गए व्यापारी
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दि राइजिंग न्यूज
संजय शुक्ल
लखनऊ।
नगर निकाय चुनाव के दूसरे चरण के लिए शुक्रवार को प्रचार थम गया लेकिन अंतिम क्षणों तक सियासी दल अपनी-अपनी गणित बैठाते दिखे। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जहां मेयर प्रत्याशी संयुक्ता भाटिया के संग व्यापारियों के संवाद –सम्मान समारोह में पहुंचे तो आम आदमी पार्टी तथा समाजवादी पार्टी ने वाहन रैली –जुलूस निकाल कर लोगों को अपना दबदबा दिखाया। आखिरी समय तक किसी भी तरह से वोटों को प्रभावित कर उन्हें अपने पक्ष में करने के लिए कवायद होती रहीं। यह अलग बात है कि अपने स्वार्थ व नफे नुकसान की जुगत में लगे व्यापारी नेताओं की होड़ में व्यापार मंडल तार-तार दिख रहा है। व्यापारी अब सीधे तौर पर सियासी खेमों में दिख रहे हैं। खास बात यह है कि यह मामला कुछ समय पहले भी उभरा था लेकिन तब जैसे तैसे डैमेज कंट्रोल हो गया लेकिन अब यह दूरियां कुछ ज्यादा गहराती दिख रहीं हैं।
कंवेंशन सेंटर में लखनऊ व्यापार मंडल के तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम में व्यापारियों ने जीएसटी संबंधी अपनी समस्याओं से लेकर नगर निगम से दिक्कतों को सामने रखा। मेयर प्रत्याशी संयुक्ता भाटिया ने खुद को व्यापारी परिवार का बताते हुए, समस्याओं को समझने व उन्हें दूर कराने का आश्वासन भी दे दिया लेकिन सवाल यह है कि इसके पहले भी दो दशक से अधिक समय से मेयर भारतीय जनता पार्टी के ही रहें। पूर्व मेयर तो उप मुख्यमंत्री भी हो गए लेकिन चाहे कामर्शियल हाउस टैक्स की समस्या हों या फिर बाजारों में मूलभूत जरूरतों व ट्रैफिक रत्ती भर को कुछ नहीं हुआ।
उधर हाउस टैक्स हाफ तथा वाटर टैक्स माफ के नारे के साथ चुनाव में ताल ठोंक रही आम आदमी पार्टी की प्रियंका माहेश्वरी बाजारों की बदहाली से नगर निगम की लचर प्रणाली के लिए भारतीय जनता पार्टी को ही आरोपित करती है। उनके मुताबिक मेयर भाजपा के और सदन में ज्यादा पार्षद भाजपा के, इसके बावजूद राजधानी में सफाई तक नहीं होती। प्रदूषण में राजधानी देश में पहले नंबर तक पहुंच गई। आठ महीने से प्रदेश में भाजपा की सरकार भी है, अगर पिछले सरकार कोई सहयोग नहीं कर रहीं थी तो फिर इन आठ महीनों में क्या हो गया।
समाजवादी पार्टी भी निकाय चुनाव में भाजपा की पतली हालत की दलील दे रही है। पार्टी के नेता साफ तौर पर कहते हैं कि हालात सामान्य होते तो मुख्यमंत्री यूं खुद रैली करते न घूम रहे होते। उपमुख्यमंत्री क्षेत्रों में बैठक कर रहे हैं लेकिन अपने दो कार्यकाल की उपलब्धि नहीं बता पा रहे हैं। बताने को केवल पूर्ववर्ती सरकार पर दोषारोपण ही है। मगर राजधानी में जो विकास –मेट्रो दिख रही है, वह पुरानी सरकार की देन हैं।
कई धड़ों मे दिख रहे हैं व्यापारी
भारतीय जनता पार्टी के लिए इस बार सबसे ज्यादा दिक्कत तलब अपने पारंपरिक व्यापारी वोटों को सहेजना पड़ रहा है। दरअसल अमीनाबाद –मौलवीगंज हो या फिर ट्रांसगोमती क्षेत्र। चंद व्यापारी नेताओं की स्वार्थगत राजनीति को हटा दें तो सामान्य व्यापारी केंद्र सरकार से ही नाराज है। जीएसटी के कारण व्यापार प्रभावित हुआ है मगर नेतागीरी चमकाने के लिए कुछ नेता जरूर पार्टी के बड़े नेताओं के आगे पीछे घूम रहे हैं। हालांकि उनके मकसद भी अलग है। लखनऊ व्यापार मंडल के कई नेता अन्य दलों के साथ खड़े दिखते हैं। एक नेता ने जहां आम आदमी पार्टी के लिए कमान संभाल रखी है तो दूसरे खुलकर सपा के साथ हैं। व्यापार मंडल की युवा इकाई के अध्यक्ष धीरेंद्र अवस्थी भी निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव मैदान में हैं मगर व्यापार मंडल ने उनके समर्थन के लिए भी जरा भी दिलचस्पी नहीं दिखाई।
फिर बिखराव की ओर व्यापार मंडल
निकाय चुनाव में सियासी दलों के चाहे जो बाजी मारे लेकिन व्यापार मंडल में विघटन का बीजारोपण जरूर हो गया है। कारण है कि कई पदाधिकारियों के खुलकर अलग अलग सियासी दलों के पक्ष में खड़े होने और व्यापार मंडल पदाधिकारियों अथवा उनके परिवारीजनों के चुनाव में उतरने के बावजूद व्यापार मंडल की अराजनैतिक होने की दलील देकर विरत रहना, लोगों को अखर गया है। लखनऊ व्यापार मंडल के चेयमैन हरिश्चंद्र अग्रवाल के मुताबिक यह स्थिति कमोबेश वैसी ही है, जैसी लखनऊ व्यापार मंडल के पूर्व अध्यक्ष बनवारी लाल कंछल के समाजवादी पार्टी में जाने पर हुई थीं। आज जो लोग भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में जाने के लिए तमाम दलीलें दे रहें हैं, उस वक्त उनमें ही अधिसंख्य विरोध में थे। कुछ नेता तो ऐसे हैं, उस वक्त कंछल के पक्ष में काम कर रहे थे और अब कंछल का प्रभाव कम होने के बाद पाला बदल कर दूसरी तरफ हैं। इसका परिणाम आने वाले समय में देखने को मिलेगा।
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