इटावा तो सिर्फ ट्रेलर, पिक्चर तो हर जगह डर्टी
- नियमित कर्मचारियों के अभाव में एजेंटों के हवाले परिवहन दफ्तर
- निर्धारित संख्या में भी नहीं हैं कर्मचारी
दि राइजिंग न्यूज
संजय शुक्ल
लखनऊ ।
लखनऊ परिक्षेत्र का अमेठी एआरटीओ कार्यालय। यहां पर महज दो कर्मचारी और एक एआरटीओ तैनात है। जबकि यहां पर वाहनों की संख्या करीब डेढ़ लाख है। इन दो कर्मचारियों के पास ही ड्राइविंग लाइसेंस से लेकर वाहनों के टैक्स –परमिट –चालान सारा काम। सवाल यह है कि आखिर कैसे काम हो रहा है। ऐसा तब है जबकि इसकी पूरी जानकारी परिवहन मुख्यालय तक को है।
राजधानी में ही स्थित देवा रोड कार्यालय। चार बाबू, दो चपरासी और एक अदद एआरटीओ। इन्हीं के जरिए वाहनो का लाइसेंस, पंजीयन आदि काम। इतना जरूर है कि इस दफ्तर में व्यावसायिक वाहनों से संबंधित काम नहीं होता है।
दरअसल यह नमूने परिवहन विभाग की कार्यप्रणाली का प्रतीक है। यह उस वक्त और ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है जबकि इटावा में परिवहन कार्यालय चल रहे एजेंटो (दलालों) के गोरखधंधे का फंडाफोड़ हुआ है। सोने-चांदी से लेकर लाखों की नगदी तथा तमाम तरह के दस्तावेज। यह सारा सिलसिला पकड़ा भले ही इटावा में गया है लेकिन चल ऐसा सभी जगह पर रहा है। कर्मचारियों ने अपने काम के बोझ को कम करने के लिए प्राइवेट लोगों को रखा हुआ है और इन प्राइवेट लोगों ने अपनी कमाई के लिए एजेंट। लिहाजा पूरा सिस्टम ही दलालों के हाथों में पहुंच गया है। ये दलाल हर कमरे, हर अनुभाग में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। ऐसे में सख्ती केवल दिखावटी होकर रह गई है। खास बात यह है कि वाहनों की फिटनेस से लेकर ड्राइविंग लाइसेंस हासिल करने तक की पूरी प्रक्रिया दलालों के हाथ में पहुंच गई है। कहने को पूरी कार्यप्रणाली आनलाइन की जा रही है लेकिन मूल दस्तावेजों के सत्यापन से अन्य काम दफ्तर में ही होता है और यही से दलालों का दखल बढ़ जाता है। हर काउंटर पर कर्मचारी के साथ दो –तीन लोग हमेशा जमे मिलते हैं। कई तो ऐसे हैं जो कई बार विभिन्न अनियमितताओं मे पकड़े गए लेकिन भ्रष्टाचार के चलते दोबारा वहां पहुंच गए। अब तो वास्तविक कर्मचारी भले न दिखें लेकिन ये हेल्पर जरूर हर जगह सक्रिय हैं। परिवहन आयुक्त कार्यालय में तैनात वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं कि दरअसल इसकी मुख्य वजह कर्मचारियों के बेहद कमी है। वाहनों की संख्या तेजी से बढ़ रही है लेकिन कर्मचारी कम होते जा रहे हैं। वाहनों की संख्या बढ़ने के साथ ही उनसे संबंधित काम भी बढ़ रहे हैं और ऐसे में काम निपटाने के लिए बाहरी लोग इंट्री पा जाते हैं। व्यवस्था को सुधारने के लिए जरूरी है कि पहले वांछित संख्या में कर्मचारियों की तैनाती की जाएं।
हर शाख पर उल्लू...
एक मशहूर शेर, बर्बाद गुलिस्ता की खातिर बस एक ही उल्लू काफी था, हर शाख. . . . . अंजाम ए गुलिस्ता क्या होगा। परिवहन दफ्तरो की हालत कुछ इसी तरह की हो गई है। विभाग में कर्मचारियों की कमी के चलते परिवहन दफ्तरों में अब हर काउंटर पर केवल एजेंट ही विराजमान हैं। कर्मचारी हैं लेकिन उनकी मदद के लिए तमाम प्राइवेट लोग घूमा करते हैं। खास बात यह है कि इनकी पकड़ होने के बाद भी कभी कोई सख्त कार्रवाई नहीं हो पाती है। राजधानी में ही विजलेंस की रेड के वक्त भी यह सामने आया। कर्मचारी तो गैरहाजिर रहने के कारण जैसे तैसे बच गए और एजेंट का पता नहीं। इस घटना के बाद कुछ दिन सख्ती दिखाई दीं लेकिन बाद में फिर सारी व्यवस्था पुराने ढर्रे पर पहुंच गई।
होता सब है लेकिन जिम्मेदार कोई नहीं
खास बात यह है कि आरटीओ दफ्तर में फर्जी दस्तावेजों पर लाइसेंस लेकर मृत व्यक्तियों के वाहनों –परमिट का स्थानांतरण तक सब हो जाता है। बस इसके लिए मोटा पैसा खर्च होता है। खास बात यह है कि सहजता से हो जाने वाले इन काम में जब कोई मामला पकड़ में आता है तो जिम्मेदारी ही फिक्स नहीं हो पाती है। खास बात यह है कि अधिकारी से लेकर जिम्मेदार शाखा के कर्मी तक अंजान बन जाते है जबकि सारा काम उन्हीं के काउंटर पर होता है। ऐसे मामलों में कार्रवाई को लेकर अधिकारी भी बेबसी जाहिर कर पल्ला झाड़ लेते हैं।
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