स्कूल चलो अभियान बनाम कमीशऩखोरी अभियान
- जूते –मोजे ही नहीं बच्चों के बस्ते भी घटिया
- उच्च न्यायालय ने तलब किया बस्तों की खरीद का विवरण
- सरकार नहीं दे पाई जूतों की खरीद के दस्तावेज
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दि राइजिंग न्यूज
संजय शुक्ल
लखनऊ।
भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टालरेंस की दुहाई देने वाली उत्तर प्रदेश सरकार का बच्चों शिक्षित करने का कार्यक्रम ही कमीशनखोरी की भेंट चढ़ गया है। पहले सर्दियों में बच्चों को स्वेटर वितरण में हुई किरकिरी के बाद सरकार कुछ संभलती उसके पहले ही घटिया जूतों की आपूर्ति का जिन्न बाहर आ गया। यह मामला अभी चल ही रहा था कि अब बच्चों को पिछले साल दिए गए स्कूली बस्ते भी फटने की शिकायत मिलने लगी। न्यायालय ने इसे संज्ञान में लेते हुए उसकी खरीद का विवरण भी तलब कर लिया है।
दरअसल सरकार ने पिछले साल जुलाई अगस्त में बच्चों को स्कूल बस्ते वितरित किए थे। सरकार ने बच्चों को शिक्षा के प्रति प्रोत्साहित करने की दलील देते हुए इसका जमकर क्रेडिट भी बटोरा लेकिन साल पूरा होते होते बस्ते फटने लगे। तमाम बच्चों के बस्ते फट गए। इतनी जल्दी बच्चों के बस्ते फटने से उनकी गुणवत्ता पर भी सवाल खड़े होने लगें। इसके पहले बच्चों को जूते मोजे दिए गए थे, वह भी घटिया क्वालिटी के होने के कारण फट गए थे और मामला कोर्ट तक पहुंच चुका है। इस मामले की सुनवाई के दौरान ही बुधवार को न्यायालय ने सचिव स्तर के अधिकारी को जूते खरीद के सारे दस्तावेज व टेंडर के साथ तलब किया था। हालांकि सरकार की ओर से इस खरीद संबंधित दस्तावेज तो नहीं प्रस्तुत किए गए लेकिन न्यायालय ने इसके साथ ही बच्चों को दिए स्कूल बैग से संबंधित दस्तावेज भी प्रस्तुत करने के आदेश दिए हैं। न्यायालय के इस सख्त रुख के बाद सरकार की परेशानी बढ़ती दिखाई दे रही है।
दरअसल सरकार द्वारा बच्चों को दिए गए जूते चार महीने में ही फट गए। जबकि स्कूल बैग भी छह महीनों में फटने लगें। इसकी शिकायतें लगातार आ रही है लेकिन इसे देखने की फुर्सत किसी को नहीं है। दोनों ही चीजों की आपूर्ति में नौकरशाहों ने जमकर खेल किया और मनमाने तरीके से खरीद की गई। खरीद के दौरान गुणवत्ता को भी नहीं देखा गया। नतीजा यह है कि कुछ महीनों में ही बच्चों के जूतों की तरह से उनके स्कूल बैग भी फट गए।
219 करोड़ से खरीदे गए थे बस्ते
बच्चों को दिए स्कूली बस्ते करीब 219 करोड़ रुपये से खरीदे गए थे। इसके बाद प्रदेश के 1.54 करोड़ बच्चों के लिए 266 करोड़ जूते मोजे लिए गए थे। घटिया क्वालिटी के जूते मोजे कुछ ही महीनों में फट गए थे। बच्चों के लिए बनी इस महत्वपूर्ण योजना के इस हश्र पर न्यायालय ने स्तब्धता व्यक्त करते हुए गुरुवार 11 अप्रैल को सरकार से जवाब मांगा था और सचिव स्तर के अधिकारी को तलब किया था। हालांकि बेसिक शिक्षा सचिव ने जवाब के लिए एक सप्ताह का समय मांगा लेकिन कोर्ट ने इसी याचिका के साथ स्कूल बैग की क्वालिटी व खरीद संबंधी याचिका को शामिल करते हुए सरकार से स्कूली बस्ते खरीदने की प्रक्रिया व टेंडर आदि के जानकारी मांग ली है। इससे सरकार की परेशानी कहीं ज्यादा बढ़ गई है। प्रकरण की अगली सुनवाई अब 20 अप्रैल को होनी है।
नौकरशाहों का खेल
बच्चों के स्कूल चलो अभियान में सरकार के नौकरशाह पलीता लगाने का कोई मौका नहीं चूक रहे हैं। दरअसल स्कूली बच्चों को जूतों की आपूर्ति का आधे से अधिक काम बिजली विभाग के लिए काम करने वाली एजेंसी को दिए जाने के मामला तूल पकड़े हुए था। अब स्कूली बैग सप्लाई में भी ऐसी ही फर्मों का हाथ होने की आशंका जाहिर की जा रही है। ज्यादा मुनाफे और कमीशनखोरी के चक्कर में ठेकेदारों और नौकरशाहों ने स्कूली बच्चों के लिए बनी योजना को ही मजाक बना दिया। हालांकि न्यायालय के रुख को देखते हुए इसमें कई नौकरशाहों पर कार्रवाई होने के आसार दिख रहे हैं।
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