निकाय नतीजों पर एक समीक्षा

साशा सौवीर
(आउटपुट हेड, दि राइजिंग न्यूज)
दि राइजिंग न्यूज़
साशा सौवीर
कोई हैरत वाली बात नहीं है कि उत्तर प्रदेश 2017 निकाय चुनाव में भाजपा ने परचम लहराया है। सालभर भी तो नहीं हुए हैं विधानसभा चुनाव को। भाजपा के प्रति जनता का मोह लाजमी है। विधानसभा चुनाव में बीजेपी को प्रचंड बहुमत मिलने के बाद इस चुनाव में भी बढ़त पहले से ही मानी जा रही थी।
भाजपा ने जिस ईमानदारी के साथ प्रचार में ताकत झोंक दी शायद ही कोई दल ऐसा कर पाया। खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्रचार में उतरे। विपक्षी दल अपना दमखम नहीं दिखा पाए। चूंकि चंद रोज बाद ही गुजरात चुनाव है इसलिए इन चुनाव का महत्व भी बढ़ जाता है। कम से कम आम आदमी का रवैया तो दर्शाते ही हैं निकाय चुनाव।
अब भाजपा की जिम्मेदारी और बढ़ गई है। गुजरात चुनाव में जहां मोदी ने स्वयं प्रचार की बागडोर संभाली है वहां वह जरूर इन चुनावों का जिक्र करेंगे। वहीं राहुल गांधी किसी भी रूप में यूपी निकाय चुनाव के बारे में बात करने से बचते दिखेंगे। एक तो वहां एक-दूसरे को चुनौती दे रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी, दोनों की संबंध उत्तर प्रदेश से है और दूसरे, हाल के समय में यह देखने को मिला है कि एक राज्य के निकाय चुनाव परिणामों ने दूसरे राज्य में हवा बनाने का कुछ न कुछ काम किया है।
यहां अगर ईवीएम की गड़पड़ी पर बात करें तो ये गंदी राजनीति जरूर मालूम होती है। अगर ईवीएम की गड़बड़ी ने भाजपा की मदद की तो फिर 16 नगर निगमों में से दो विपक्ष के पास कैसे चले गए। वह भी बसपा के पास जो ईवीएम में गड़बड़ी का सबसे ज्यादा हल्ला मचा रही थी।
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